Mujahana•
Bilingual-Weekly• Volume 19 Year 19 ISSUE 09A, Feb. 21- Feb. 27, 2014. This issue is Muj14W06A War against dominion War against dominionइंडिया आज भी ब्रिटिश उपनिवेश है| साध्वी प्रज्ञा, जिनके ८ सहयोगी मस्जिदों में बमविस्फोट के आरोप में २००८ से जेल में हैं, ने स्वतंत्रता के उस युद्ध को प्रारम्भ कर दिया है, जिसे १५ अगस्त, १९४७ से छल से रोका गया है| {भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, १९४७, अनुच्छेद ६ (ब)(।।) भारतीय संविधान व राष्ट्कुल की सदस्यता}. हमारे अतिरिक्त ५२ अन्य देश भी एलिजाबेथ के अधीन हैं| मनुष्य को दास बनाने का सर्वोत्तम मार्ग है, उसको वीर्यहीन करना| खतने पर अपने शोध के पश्चात १८९१ में प्रकाशित अपने ऐतिहासिक पुस्तक में चिकित्सक पीटर चार्ल्स रेमोंदिनो ने लिखा है कि पराजित शत्रु को जीवन भर पुंसत्वहीन कर (वीर्यहीन कर) दास के रूप में उपयोग करने के लिए शिश्न के अन्गोच्छेदन या अंडकोष निकाल कर बधिया करने (जैसा कि किसान सांड़ के साथ करता है) से खतना करना कम घातक है| पीटर जी यह बताना भूल गए कि दास बनाने के लिए खतने से भी कम घातक, यौनशिक्षा, वेश्यावृत्ति और समलैंगिक सम्बन्ध को संरक्षण देकर मनुष्य को वीर्यहीन करना है| मूसा से लेकर एलिजाबेथ तक सभी मानवमात्र को वीर्यहीन कर रहे हैं| http://en.wikipedia.org/wiki/Peter_Charles_Remondino मूसा ने वीर्यक्ष्ररण को बाइबल में महिमामंडित किया, “और तुम अपने चमड़ी का मांस खतना करेगा, और यह वाचा मेरे और तुम्हारे betwixt की निशानी होगी.” बाइबल, उत्पत्ति १७:११. अनैतिक पुत्र ईसा को जन्म देने वाली मरियम पूजनीय है और यहोवा का एकलौता पुत्र भी| http://2nobib.com/index.php?title=Genesis_17/hi खतना वीर्यहीन करने की विधि है| इस्लाम में, खतना एक सुन्नाह रिवाज है, जिसका कुरान में ज़िक्र नहीं किया गया है. मुख्य बात यह है कि इसका पालन करना अनिवार्य नहीं है और यह इस्लाम में प्रवेश करने की शर्त भी नहीं है. अतः मुसलमानों को हमारी नेक सलाह है कि वे अपनी भावी पीढ़ी का खतना न करें| भावी पीढ़ी के अष्ट सिद्धियों और नौ निधियों के दाता, स्वतंत्रता, परमानंद, आरोग्य, ओज, तेज और स्मृति के जनक वीर्य को नष्ट न होने दें| जो कोई वीर्यक्षरण करता या कराता है, स्वयं का ही नहीं - मानवजाति का भयानक शत्रु है| वीर्यवान बन कर ही मुसलमान अपनी रक्षा कर पाएंगे| जेहोवा या अल्लाह का अस्तित्व नहीं है| मूसा या मुहम्मद की बात करें, जिसने यहूदियों (बाइबल, उत्पत्ति २:१७) या मुसलमानों (कुरान २:३५) को मूर्ख बनाया| मूसा / मुहम्मद तो नर्क में गया और अपनी वरासत शासकों और पुरोहितों को सौंप गया| जहां इस्लाम मुसलमानों को असहिष्णुता की शिक्षा देता है, वहीं प्रेत – जारज(जार्ज) ईसा हर उस व्यक्ति को कत्ल कराता है, जो ईसा को अपना राजा स्वीकार नहीं करता| तथाकथित पैगम्बर मूसा, ईसा और मुहम्मद तो रहे नहीं, अपनी वरासत सुल्तानों, राजाओं और शासकों को दे गए हैं, जो पुरोहितों, ईमामों व मीडिया कर्मियों का शोषण कर रहे हैं, जिसके कारण सत्य पर पर्दा पड़ा है| दूसरे की सम्पत्ति की चोरी और नारियों के यौन शोषण के लोभ ने हजारों वर्षों से मानव जाति को तबाह कर रखा है| ईराक के सद्दाम रहे हों या ओसामा अथवा उनका इस्लाम, ईसा उनका दोहन कर रहा है| दोनों भष्मासुर ईसाइयों ने ही तैयार किये| काम लेकर ठिकाने लगा दिया| जब वैदिक सनातन संस्कृति मिट जाएगी तो जैसे इस्लाम के खलीफा मिटे, वैसे ही ईसाई इस्लाम को भी मिटा देंगे| मुसलमान और उनका इस्लाम इस लिए जीवित हैं कि वैदिक सनातन संस्कृति मिटी नहीं है| यहाँ विश्वामित्र और मेनका की कथा प्रासंगिक है| इंद्र ने वीर्यवान विश्वामित्र को पराजित करने के लिए मेनका का उपयोग किया| मूसा (बाइबल, याशयाह १३:१६) व मुहम्मद (कुरान २३:६) ने तो इंद्र की भांति धरती की सभी नारियां मुसलमानों और ईसाइयों को सौंप रखी हैं|. इतना ही नहीं ईसा ने बेटी (बाइबल, १, कोरिन्थिंस ७:३६) से विवाह की छूट दी है| अल्लाह ने मुहम्मद का निकाह उसकी पुत्रवधू जैनब (कुरान, ३३:३७-३८) से किया और ५२ वर्ष के आयु में ६ वर्ष की आयशा से उसका निकाह भी किया| आप की कन्या को बिना विवाह बच्चे पैदा करने के अधिकार का संयुक्त राष्ट्र संघ कानून पहले ही बना चुका है| [मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा| अनुच्छेद २५(२)]. “विवाह या बिना विवाह सभी जच्चे-बच्चे को समान सामाजिक सुरक्षा प्रदान होगी|”. ब्रह्मचर्य और वीर्य की महिमा प्रत्येक मनुष्य ब्रह्म है| उसको जन्म के साथ ही प्राप्त वीर्य का सूक्ष्म अंश ब्रह्म सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, सर्व-व्याप्त, वह शक्ति है जिससे सब कुछ, यहाँ तक कि ईश्वर भी उत्पन्न होते हैं। आतताई अब्रह्मी संस्कृतियां खतना, कामुक सुख, समलैंगिक सम्बन्ध, सहजीवन, कौटुम्बिक व्यभिचार आदि द्वारा मनुष्य के इसी वीर्य को नष्ट कर उसे दास बना चुकी हैं| ईसाइयों ने कुमारी माओं को महिमामंडित कर और वैश्यावृति को सम्मानित कर मानवमात्र को वीर्यहीन कर दिया है| इन मजहबों ने संप्रभु मनुष्य को दास व रुग्ण बना दिया है| अहम् ब्रह्मास्मि का सरल हिन्दी अनुवाद है कि मैं ब्रह्म हूँ । साधारण व्यक्ति दिग्भ्रमित हैं। इसका कारण यह है कि लोग - जड़ बुद्धि व्याख्याकारों के कहे को अपनाते है। किसी भी अभिकथन के अभिप्राय को जानने के लिए आवश्यक है कि उसके पूर्वपक्ष को समझा जाय। हम वैदिक पंथी उपनिषदों के एक मात्र प्रमाणिक भाष्यकार आदिशंकराचार्य के कथन को प्रमाण मानते हैं, जो किसी व्यक्ति के मन में किसी भी तरह का अंध-विश्वास अथवा विभ्रम नहीं उत्पन्न करना चाहते थे। इस अभिकथन के दो स्पष्ट पूर्व-पक्ष हैं- १) वह धारणा जो व्यक्ति को अधीन करने के लिए धर्म का आश्रित बनाती है। अब्रह्मी संस्कृतियां’ यही कर रही हैं| जैसे, एक मनुष्य क्या कर सकता है, करने वाला तो कोई और ही है। मीमांसा दर्शन का कर्मकांड-वादी समझ, जिसके अनुसार फल देवता देते हैं, कर्मकांड की प्राविधि ही सब कुछ है । वह दर्शन व्यक्ति सत्ता को तुच्छ और गौण करता है- देवता, मन्त्र और धर्म को श्रेष्ठ बताता है। एक व्यक्ति के पास पराश्रित और हताश होने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं बचता। धर्म में पैगंबर/पौरोहित्य के वर्चस्व तथा कर्मकांड की 'अर्थ-हीन' दुरुहता को (अहम् ब्रह्मास्मि) का अभिकथन चुनौती देता है। हमारे निःशुल्क गुरुकुल बचपन में स्वावलम्बी बनाने के लिए अहम् ब्रह्मास्मि पर बल देते हैं| २) सांख्य-दर्शन की धारणा है कि व्यक्ति (जीव) स्वयं कुछ भी नहीं करता, जो कुछ भी करती है - प्रकृति करती है। बंधन में भी पुरूष को प्रकृति डालती है तो मुक्त भी पुरूष को प्रकृति करती है। यानी पुरूष सिर्फ़ प्रकृति के इशारे पर नाचता है। इस विचारधारा के अनुसार तो व्यक्ति में कोई व्यक्तित्व है ही नहीं। अतः स्वीकार्य नहीं| इन दो मानव-सत्ता विरोधी धारणाओं का खंडन और निषेध करते हुए शंकराचार्य मानव-व्यक्तित्व की गरिमा की स्थापना करते हैं। आइये, समझे कि अहम् ब्रह्मास्मि का वास्तविक तात्पर्य क्या है? अहम् यानी मैं (स्वयं) ‘ब्रह्म’ अस्मि यानी हूँ और यही सच है और यह उतना ही सच है जितना कि दो और दो का चार होना| अहम् ब्रह्मास्मि का तात्पर्य यह निर्देशित करता है कि मानव यानी प्रत्येक व्यक्ति स्वयं संप्रभु है। उसका व्यक्तित्व अत्यन्त महिमावान है - इसलिए हे मानवों! आप चाहे मुसलमान हो या ईसाई, अपने व्यक्तित्व को महत्त्व दो। आत्मनिर्भरता पर विश्वास करो। कोई ईश्वर, पंडित, मौलवी, पादरी और इस तरह के किसी व्यक्ति को अनावश्यक महत्त्व न दो। तुम स्वयं शक्तिशाली हो - उठो, जागो और जो भी श्रेष्ठ प्रतीत हो रहा हो, उसे प्राप्त करने हेतु उद्यत हो जाओ। जो व्यक्ति अपने पर ही विश्वास नही करेगा - उससे दरिद्र और गरीब मनुष्य दूसरा कोई न होगा। यही है अहम् ब्रह्मास्मि का अन्यतम तात्पर्य। मेरा यही सुझाव मानवमात्र के लिए है| क्या आप की सरकार महंगे यौनशिक्षा प्रणाली को बदल कर भावी पीढ़ी को सम्प्रभु बनाने वाले ब्रह्मचर्य के निःशुल्क शिक्षाकेंद्र गुरुकुलों को पुनर्जीवित करने में रूचि लेगी? निर्णय आप स्वयं करें| आप अपने देश की आजादी का युद्ध लड़ेंगे या एलिज़ाबेथ के उपनिवेश में अपने नागरिकों को सम्पत्ति और जीवन के अधिकार से वंचित रखेंगे? यदि महामहिम मानवमात्र की रक्षा चाहें तो आर्यावर्त सरकार को मान्यता और सहायता दें| अयोध्या प्रसाद त्रिपाठी, फोन ९१५२५७९०४१ २४/०२/१४
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