प्रेषक:- अयोध्या प्रसाद त्रिपाठी पुत्र स्व० श्री बेनी माधव त्रिपाठी, मंगल आश्रम, टिहरी मोड़, मुनी की रेती, टिहरी गढ़वाल, २४९१३७, उत्तराखंड, पत्र स० 16323YSS Dtd. Wednesday, March 23, 2016 विषय :- सिंचाई विभाग (उ० ख०) द्वारा सर्विस बुक गायब करके १५ वर्षो से तरह तरह के बहाने बताकर मूल मुद्दे से हटकर पत्र व्यवहार में उलझाये रखकर पेंशन व मूल वेतन के बकाये का भुगतान न करना. संदर्भ: अधिशासी अभियंता का पत्र संख्या पत्रांक:- 786/ पी०एम०जी०एस०वाई० सि०ख० श्रीनगर/ अयोध्या प्रसाद/ दिनांक 17/03/2016 एवं मुख्यमंत्री कार्यालय का पत्रांक VIP(M)(B)1887/XXXV-1/2016(1) देहरादून – दिनांक २९-०२-२०१६. सचिव महोदय, सिचाई विभाग, उत्तराखंड सरकार, कृपया उपरोक्त पत्रों का अवलोकन करें. पहले मैं सीधे आप को उत्तर देने के लिए क्षमा मांगता हूँ. क्योंकि निर्णय लेने में आपही सक्षम हैं. मैं पुनः यह स्पष्ट करना चाहता हूँ कि मैंने चंद्र प्रभा खंड में कभी नौकरी नहीं की. यदि विभाग यह सिद्ध कर दे कि मैंने चन्द्रप्रभा खंड में नौकरी की थी, तो मैं अर्थ दंड देने के लिए प्रस्तुत हूँ. मेरे सेवा पुस्तिका को पत्र के लिखने के अनुसार २२-१०-१९८३ को भेजा गया. उसके पश्चात आज तक सेवा पुस्तिका को मंगवाने के क्या प्रयास किये गए? यदि नहीं किये गए तो क्यों? अधिशासी अभियंता महोदय ने मुझे ६ संलग्नक भेजे हैं. लेकिन इनमे किसी छाया प्रति में मुझसे यह लिखा हुआ नहीं दिया गया है कि मैं कार्य मुक्त हो कर जा रहा हूँ. उत्तर बिंदु सं०-६ के संदर्भ में मेरा निवेदन है कि अपने स्थानांतरण का संज्ञान होते ही मैंने एक पत्र २८-०७-१९८४ को लिखा था. पत्र में मैंने आग्रह किया था कि बिना वेतन बकायों के भुगतान के मुझे कार्यमुक्त न किया जाये. इसके अतिरिक्त यह भी आग्रह किया था कि अपनी सेवा पुस्तिका को लाने के लिए मुझे आदेश दिया जाये. उस पत्र की छाया प्रति संलग्न कर रहा हूँ. यह मूल प्रार्थना मेरी फाइल में उपलब्ध है. (संलग्नक-१प) अपने बकायों के भुगतान के लिए मैंने जोशीमठ तहसील में धरना भी दिया था और १९८३ में ही स्टेट एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल में याचिका भी डाली थी, जिसका निर्णय भी मेरे पक्ष में २९ नवम्बर, १९९४ को हुआ. मेरे विरुद्ध कोई भी अनुशासनात्मक कार्यवाही नहीं की गई. न मुझे भगोड़ा ही घोषित किया गया. बारम्बार प्रयास के बाद भी न मुझे नौकरी ही दी गई और न आज तक बकाया भुगतान ही किया गया. विभाग ने मुझे बिना मेरे बकाए के भुगतान के, बिना मेरे पत्र का उत्तर दिए, दुर्भावना से कार्यमुक्त किया है. जब मैं जोशीमठ से सुल्तानपुर गया ही नहीं तो किस अधिकार से उत्तर प्रदेश से अपने पेंशन की मांग करूं? क्योंकि अपने पत्रों द्वारा मूसाखंड इंकार कर चुका है. (संलग्नक-२प) यह प्रदेश का झगड़ा है. इसे निपटाना आप का दायित्व है. विभाग ने तो तब भी मुझे गुजारा भत्ता दिया था, जब मैं अभियुक्त था. मैं वृद्धावस्था के रोगों से पीड़ित हूँ. चल फिर भी नहीं पाता. अंतरिम पेंशन देकर कृपया मेरी सहायता करिये. अंत में यह भी बता दूं कि मैं एक ऐसे समाज का व्यक्ति हूँ, जिसमे अपने व्यवसाय से जुड़े लोगों से कोई पैसा लेता ही नहीं. एक मामूली जूते सिलने वाला मोची और मल्लाह तक भी नहीं. लेकिन वही व्यक्ति जब लोकसेवक बन जाता है, तो उसकी मानवीयता और सहयोग की भावना मर जाती है. अतः ईश्वर से डरिये. यही आग्रह है. आदर सहित, भवदीय;
[अयोध्या प्रसाद त्रिपाठी , फोन: (+९१) ९८६८३२४०२५/९१५२५७९०४१] बुधवार, 23 मार्च 2016 कृपया लिंक देखें. http://www.aryavrt.com/pension-16323yss |