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UPNIVESH KAJSHN
उपनिवेश काजश्न.
युद्ध भूमि में भारत कभी नहीं हारा| लेकिन अपने ही जयचंदों से हारा है|
समझौतों से हारा है| अपनी मूर्खता से हारा है| उन्हीं समझौतों में, इंडियन
इंडिपेंडेंस एक्ट १९४७ के अधीन, सत्ता के हस्तांतरण का समझौता भी है| समझौते के अधीन नागरिकों को कत्ल करने
या करवाने, लूटने और लूट का हिस्सा ब्रिटेन तक पहुँचाने का उत्तरदायित्व काले शासकों
को सौंपा गया है|
इस समझौते के अधीन इंडिया और पाकिस्तान दो उपनिवेश बनाये गए.
अब्रह्मी संस्कृतियों के अनुयायियों को वैदिक सनातन संस्कृति के अनुयायियों को
कत्ल करने के लिए रोका गया| जोइसे स्वतंत्रता नहीं मानेगा, मिटा दिया जायेगा.
केवल उन्हें ही जीवित रहने का अधिकार है, जो ईसा का दास बने| (बाइबल, लूका १९:२७). स्वर्ग उन्हें ही मिलेगा,
जो बपतिस्मा ले| एलिजाबेथ के साम्प्रदायिक साम्राज्य विस्तारवादी ईसा को
अर्मगेद्दन द्वारा धरती पर केवल अपनी पूजा करानी है| हिरण्यकश्यप की दैत्य संस्कृति न बची
और केवल उसी की पूजा तो हो न सकी, अब
ईसा और ईसाइयत की बारी है|
कुरान के अनुसार अल्लाह व उसके साम्प्रदायिक साम्राज्य
विस्तारवादी खूनी इस्लाम ने मानव जाति को दो हिस्सों मोमिन और काफ़िर में बाँट रखा
है| धरती को भी दो
हिस्सों दार उल हर्ब और दार उल इस्लाम में बाँट रखा है| (कुरान ८:३९) काफ़िर को कत्ल करना व दार
उल हर्ब धरती को दार उल इस्लाम में बदलना मुसलमानों का असीमित मौलिक मजहबी अधिकार है|
चुनाव द्वारा भी इनमें कोई परिवर्तन
सम्भव नहीं| इनके
विरुद्ध कोई जज सुनवाई नहीं कर सकता| (एआईआर, कलकत्ता,
१९८५, प१०४). यही गंगा-यमुनी संस्कृति व
सर्वधर्मसमभाव है. जो नहीं मानेगा, मिटा दिया जायेगा.
बाद में कुटरचित परभक्षी भारतीय संविधान के अनुच्छेद २९(१), ३९(ग), ६०,
१५९ और अनुसूची ३ का संकलन किया गया. दंड प्रक्रिया संहिता की धाराओं १९६ व १९७ को
यथावत रहने दिया गया.
ईसाई व मुसलमान सहित, नागरिक के पास जीवित रहने, सम्पत्ति और
उत्पादन के साधन रखने के अधिकार नहीं रहे|
लूट में कोई व्यवधान न आये, इसे सुनिश्चित करने के लिए संविधान
के अनु० ३१ प्रदत्त सम्पत्ति के जिस अधिकार को अँगरेज़ और संविधान सभा के लोग न लूट
पाए, उसे सांसदों और
जजों ने मिल कर लूट लिया (एआईआर, १९५१, एससी ४५८). अब तो इस अनुच्छेद को २० जून,
१९७९ से संविधान से ही मिटा दिया गया है| भारतीय संविधान
का अनुच्छेद ३९(ग) किसी नागरिक को सम्पत्ति या पूँजी रखने का अधिकार नहीं देता| इसे
भ्रष्टाचार कहने वाले को भारतीय दंड संहिता की धाराओं १५३ व २९५ के अधीन राष्ट्रपति और
राज्यपाल के दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १९६ के संस्तुति पर जेल भेजा जा रहा है|
दंड
प्रक्रिया संहिता की धारा १९७ के अधीन संरक्षण दे कर लोकसेवकों
को
जनता को लूटने के लिए नियुक्त किया गया है| भारतीय संविधान के अनुच्छेदों ६० व १५९ के
अंतर्गत राष्ट्रपति और राज्यपाल को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १९७ के अधीन लोक सेवकों की लूट को संरक्षण देने के लिए शपथ लेनी पड़ती है.
लोकसेवक की लूट को तब तक भ्रष्टाचार नहीं माना जाता, जब तक एलिजाबेथ को लूट में हिस्सा मिलता रहे| जनता
को
लूटने
के
लिए
ही
जजों
को
भी नियुक्त
किया
गया
है| जब
तक
जज
तारीख
पर
१०
रूपये
भेंट
लेते
हैं
और
इलाहाबाद
उच्च
न्यायलय
का
रजिस्ट्रार
तारीख
देने
के
लिए
५००
रूपये,
इन्हें
भ्रष्टाचार
नहीं
माना
जाता| जब
तक
चौराहे
पर
ट्राफिक
पुलिस
वसूली
करता
है,
जज
व
लोकसेवक
जनता
को
लूटते
हैं
और
एलिजाबेथ
को
हिस्सा
देते
हैं, उनको
दंड
प्रक्रिया
संहिता
की
धारा
१९७
के
अधीन
एलिजाबेथ
अपने
द्वारा
मनोनीत
राज्यपालों
से
संरक्षण
दिलवाती
है| हिस्सा
न
मिले
तो
एलिजाबेथ
संरक्षण
वापस
ले
लेती
है|
मुझे तरस आता है, जब मुसलमान कश्मीर को उपनिवेश इंडिया से
उपनिवेश पाकिस्तान में मिलाने के लिए रक्त बहाते हैं|
सेना आप की रक्षक है| भारत में सेना का मनोबल तोड़ने के लिए, १९४७ से ही षड्यंत्र जारी है| १९४७ में इंडियन सेना पाकिस्तानियों को
पराजित कर रही थी| सेना
वापस बुला ली गई| सैनिक
हथियार और परेड के स्थान पर जूते बनाने लगे| परिणाम १९६२ में चीन के हाथों पराजय के
रूप में आया| १९६५
में जीती हुई धरती के साथ हम प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को गवां बैठे|
१९७१ में पाकिस्तान के ९३ हजार युद्ध
बंदी छोड़ दिए गए लेकिन भारत के लगभग ५० सैनिक वापस नहीं लिये गए| एलिजाबेथ के लिए इतना कुछ करने के बाद
इंदिरा और राजीव दोनों मारे गए| कारगिल
युद्ध में पाकिस्तानी सैनिकों को वापस जाने दिया गया| अटल विरोध करते तो वे भी मारे जाते|
एडमिरल विष्णु भागवत के बाद अब वीके
सिंह का नम्बर लगा है| नमो
या तो एलिजाबेथ की दासता करेंगे और वैदिक सनातन संस्कृति मिटायेंगे अथवा एलिजाबेथ नमो को कत्ल करवा देगी|
इंडिया में मुसलमानों को रोके जाने का कारण?
इंडिया
में ईसाइयों की संख्या नगण्य ही रही| इसी कारण वैदिक सनातन संस्कृति के अनुयायियों से ईसाई स्वयं नहीं लड़ सकते| इसलिए ईसाई अपने ही शत्रु मुसलमानों व उनके इस्लाम का शोषण करके वैदिक सनातन संस्कृति के अनुयायियों को मिटा रहे हैं| हिंदू मरे या मुसलमान - अंततः ईसा का शत्रु मारा जा रहा है| अज़ान और खुत्बे अपराध नहीं हैं और न
मस्जिद अपराध स्थल हैं. लेकिन आत्म रक्षा के लिए अज़ान, खुत्बों और मस्जिद का विरोध
अपराध है. इसीलिए भारतीय संविधान
के अनुच्छेद २९(१) का संकलन कराया गया है, जिसका विरोध करने के कारण आर्यावर्त सरकार के ९ अधिकारी जेलों
में बंद हैं|
साध्वी प्रज्ञा की रीढ़ की हड्डी तोड़ दी गई है| उनको जहर दिया गया है| अब वे कैंसर
से पीड़ित हैं. यानी आत्मरक्षा दंडनीय अपराध है.
अयोध्या प्रसाद त्रिपाठी (सू० स०) फोन:
(+९१) ९८६८३२४०२५/९१५२५७९०४१
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व्यक्ति इस पर हुई कार्यवाही का उपरोक्त न० द्वारा ज्ञान प्राप्त कर सकता है|