Mujahana•
Bilingual-Weekly• Volume 18 Year 18 ISSUE 08, Feb 22-28, 2013. This issue is Muj13W08 EnBWy Muj13W08 EnBW विवश जजविषय: विद्वान मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट श्री संदीप गुप्ता, रोहिणी का भारतीय दंड संहिता की धाराओं १५३अ व २९५अ के अभियोजन में गैर जमानती वारंट| सन्दर्भ: प्राथमिकी स० ४०६/०३ व १६६/०६ थाना नरेला आशा है कि मेरा पिछला अंक अवश्य मिला होगा| अंक हमारे वेबसाइट पर भी उपलब्ध है| देखें नीचे लिंक पर:- http://www.aryavrt.com/muj13W02-EnBW कृपया उसको पढ़ने के बाद ही आगे पढ़ें:- ईसाइयत और इस्लाम मानवता को वश में करने के लिए, नपुंसक बना देने वाले, गढ़े गए मजहब हैं. ईसाइयत और इस्लाम डायनासोर की भांति मानवजाति को मिटाने अथवा दास बनाने के लिए गढे गये हैं. हम उस भारतीय संविधान के अनुच्छेद २९(१) को क्यों स्वीकार करें, जिसने हमें मार डालने का मुसलमानों और ईसाइयों को निरंकुश मौलिक अधिकार प्रदान किया है? यह इन मजहबों के खिलाफ जागने और लड़ने का समय है. ईसाइयत और इस्लाम मानव जाति के लिए खतरा हैं. मुसलमानों और ईसाइयों के साथ कोई सह - अस्तित्व नहीं हो सकता है. जब तक मुसलमान व ईसाई मुहम्मद और यीशु में विश्वास करते हैं, वे मानवजाति के लिए और यहां तक कि खुद एक दूसरे के लिए खतरा हैं. धर्मनिरपेक्षता और बहुसंस्कृतिवाद यहूदी, ईसाई और इस्लाम मजहबों की दासता की मांग के कारण दिवालिया हो चुके हैं. {अज़ान, (कुरान २:१९१-१९४ व ८:३९) और (बाइबल, पलायन, अध्याय २०, दस आज्ञाएँ, नियम ३ व ५) व (बाइबल, लूका १९:२७)}. द्वैतवादी नैतिकता की सहिष्णुता की संस्कृति पवित्र असहिष्णुता के सामने ढह जाती है| लेकिन भयवश बुद्धिजीवी इस असफलता की अनदेखी करते हैं| ईसाइयत और इस्लाम में स्वधर्म पालन या विश्वास की कोई स्वतंत्रता नहीं है| मुसलमानों और ईसाइयों को अपने ईसाइयत और इस्लाम को त्यागना होगा, अपने नफरत की संस्कृति (केवल अल्लाह पूज्य है की अज़ान द्वारा घोषणा और अकेले यीशु मोक्ष प्रदान कर सकते हैं की घोषणा का परित्याग करना पडेगा) – गैर मुसलमानों और गैर ईसाइयों में साथी के रूप में शामिल होना होगा| अन्यथा गैर मुसलमानों और गैर ईसाइयों को नैतिक अधिकार है कि वे मुसलमानों और ईसाइयों से स्वयं को अलग कर लें| ईसाइयत और इस्लाम मजहबों को प्रतिबंधित करें| मुसलमानों और ईसाइयों के आव्रजन को प्रतिबंधित कर दें और उन्हें कत्ल कर दें, जो मानवजाति को दास बनाने अन्यथा कत्ल करने का षड्यंत्र कर रहे हैं - सर्वधर्म समभाव के विरुद्ध आचरण कर रहे हैं| ईसाइयत और इस्लाम के आचरण मानवता और नैतिकता के विरुद्ध हैं| ईसाइयत {(बाइबल, मत्ती १०:३४) व (बाइबल, लूका १२:४९)} और इस्लाम (कुरान २:२१६) निरंतर युद्धरत सम्प्रदाय हैं| दोनों ही लोकतंत्र की आड़ में विश्व में अपनी तानाशाही स्थापित करने के लिये मानवजाति के आजादी व चरित्र को मिटा रहे हैं| इस बर्बरता और सभ्यता और एक विश्व आपदा के बीच टकराव को टालने के लिए एक ही रास्ता है कि ईसाई और इस्लाम मजहब के भ्रम को बेनकाब किया जाय और उन्हें रहस्यमय नहीं रहने दिया जाय. गैर मुसलमानों और गैर ईसाइयों को मुसलमानों और ईसाइयों के साथ शांति से जीने के लिए यह आवश्यक है कि ईसाइयत और इस्लाम से प्रत्येक ईसाई व मुसलमान को विलग कर दिया जाये| ईसा ने स्वयं को मानव मात्र का राजा घोषित कर रखा है। (बाइबल, लूका १९:२७). जो ईसा को राजा स्वीकार न करे उसे कत्ल करने का प्रत्येक ईसाई को, भारतीय संविधान के अनुच्छेद २९(१) के अधीन, असीमित मौलिक मजहबी अधिकार है। मस्जिदों से काफिरों को और चर्चों से गैर-ईसाइयों को कत्ल करने की शिक्षा दी जाती है| चुनाव द्वारा भी इनमें कोई परिवर्तन सम्भव नहीं| हम अभिनव भारत और आर्यावर्त सरकार से जुड़े बागियों ने ज्ञान के वृक्ष का फल खा लिया है| ईसाइयत और इस्लाम के विरोध के कारण साध्वी प्रज्ञा सहित हमारे ९ अधिकारी जेलों में हैं| हमारे लिए मूर्खों के वैश्यालय व मदिरालय नामक स्वर्ग का दरवाजा सदा के लिए बंद हो चुका है| {(बाइबल, उत्पत्ति २:१७) व (कुरान २:३५)}| हमें ज्ञात हो गया है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद २९(१) को वैदिक सनातन धर्म सहित मानव जाति को मिटाने अन्यथा मानव मात्र को दास बनाने के लिए संकलित किया गया है| दंड प्रक्रिया संहिता की धारायें १९६ व १९७ नागरिक को वैदिक सनातन संस्कृति के विनाश और सम्पत्ति व उत्पादन के साधन के लूट के विरुद्ध शिकायत करने के अधिकार से भी वंचित करती हैं! इंडिया में मुसलमानों और ईसाइयों को इसलिए रोका गया है कि दोनों ने, किसान के बैल की भांति, स्वेच्छा से शासकों की दासता स्वीकार कर ली है| वैदिक सनातन संस्कृति मिटाना दोनों के लिए ईश्वरीय आदेश है| यह संस्कृतियों का युद्ध है, जिसे आप नहीं लड़ सकते| मात्र मैं लड़ सकता हूँ, क्यों कि मेरे पास जीवन के अतिरिक्त खोने के लिये कुछ नहीं बचा है| मेरी लगभग २ अरब रुपयों की सम्पत्ति सोनिया के लिए सोनिया के मातहतों ने लूट ली है| विशेष विवरण के लिये नीचे की लिंक पर क्लिक करें:- http://www.aryavrt.com/astitv-ka-snkt http://www.aryavrt.com/victim-of-faiths भारतीय दंड संहिता की धारायें १०२ व १०५ इंडिया के प्रत्येक नागरिक को प्राइवेट प्रतिरक्षा का कानूनी अधिकार देती है और प्राइवेट प्रतिरक्षा में किया गया कोई कार्य भारतीय दंड संहिता की धारा ९६ के अनुसार अपराध नहीं है| अपने इन्हीं धाराओं से प्राप्त अधिकार से मैं ईसाइयत और इस्लाम का विरोध करता हूँ| लेकिन अज़ान द्वारा मस्जिद से ईशनिंदा और कत्ल करने के खुत्बे (शिक्षाएं) अपराध नहीं माने जाते| दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १९६ के अधीन विवश राज्यपाल मस्जिदों से अज़ान और अल्लाह के कुरान के अनुसार मुसलमानों को काफिरों को कत्ल करने की शिक्षा देने वाले ईमाम के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की धाराओं १५३ व २९५ के अंतर्गत सन १८६० से आज तक कार्यवाही नहीं कर सके| भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, १९४७ और भारतीय संविधान के अनुच्छेद २९(१) के, १९४७ से, एक भी विरोधी का आज तक किसी को ज्ञान नहीं है! भारतीय संविधान के संकलनकर्ता अम्बेडकर ने २ सितम्बर, १९५३ को राज्य सभा में कहा, “इस संविधान को आग लगाने की जिस दिन जरूरत पड़ेगी, मैं पहला व्यक्ति रहूंगा जो इसे आग लगाउॅंगा। भारतीय संविधान किसी का भला नहीं करता|“ (यह कथन राज्य सभा की कार्यवाही का हिस्सा है।) इस कथन से नेहरु कुपित हो गया| नारो के अध्यक्ष श्री डीके गुप्ता के अनुसार नेहरु के सहयोग से भरतपुर नरेश श्री बच्चू सिंह ने अम्बेडकर को राज्य सभा के भीतर, तमाम सांसदों की उपस्थिति में, गोली मार दिया और किसी को विरोध करने का साहस नहीं हुआ| न किसी को पता है! जानते हैं क्यों? क्यों कि ईसाइयत और इस्लाम का एक भी आलोचक जीवित नहीं छोड़ा जाता| गैलेलियो हों या आस्मा बिन्त मरवान अथवा संविधान के संकलनकर्ता अम्बेडकर - सबके विरोध दब गए| अपने अनुयायियों सहित ईसाइयत, इस्लाम और भारतीय संविधान किसी को भी स्वतंत्रता, जीवन, सम्पत्ति और सम्मान के अधिकार नहीं देते| अपने बचाव हेतु हमारी सहायता करें| आर्यावर्त सरकार दास बनाने वाली इन संस्कृतियों को मिटाना चाहती है| वैदिक सनातन संस्कृति किसी भी अन्य धर्म के लिए कोई निहित शत्रुता के बिना एक ऐसी संस्कृति है. जो केवल वसुधैव कुटुम्बकम के बारे में बात करती है. इसके आचार, मूल्य और नैतिकता सांप्रदायिक नहीं - सार्वभौमिक हैं| वे पूरी मानव जाति के लिए हर समय लागू हैं| इसका दर्शन मलेशिया, इंडोनेशिया, फिलीपींस, थाईलैंड, म्यांमार, जापान, चीन, अफगानिस्तान और कोरिया में फैल गया था| एक बार अमेरिका में चीन के राजदूत ने कहा, “भारत एक भी सैनिक बाहर भेजे बिना तमाम देशों पर विजय प्राप्त करने वाला दुनिया में एकमात्र देश है" ठीक इसके विपरीत ईसाइयत और इस्लाम संस्कृतियों ने जहां भी आक्रमण या घुसपैठ की, वहाँ की मूल संस्कृति व निवासियों को नष्ट कर दिया| लक्ष्य प्राप्ति में भले ही शताब्दियाँ लग जाएँ, ईसाइयत और इस्लाम आज तक विफल नहीं हुए| अतएव निर्णय स्वयं करिये – क्या जज, राष्ट्रपति या राज्यपाल मेरे अभियोग वापस ले सकते हैं? इस धरती पर कोई ऐसा है जो मेरा जीवन बचा ले ताकि मानवजाति की रक्षा हेतु ईसाइयत और इस्लाम मिटे? अयोध्या प्रसाद त्रिपाठी, (सूचना सचिव) फोन ९१५२५७९०४१ Grievance Regn No is: GNCTD/E/2013/03157
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