पंडित
जी को प्रणाम!
आप
ने लिखा, “जब हम किसी दूसरे के धर्म की निंदा
करते हैं तो समझो हम दूसरे के धर्म की निंदा नहीं कर रहे, हम अपने धर्म की निंदा कर रहे हैं! क्यूंकि धर्म तो कभी भी यह
नहीं सिखाता कि हम किसी दूसरे के धर्म की निंदा करें! सबको अपना- अपना प्यारा होता
है, जिस प्रकार हमें अपना धर्म प्यारा है!!
“इसलिए
दूसरों के धर्म की निंदा करने से बचो, दूसरों
के धर्म की निंदा मत करो!! जो धर्म दूसरे की निंदा करता है, वास्तव में वह धर्म ही नहीं है!! वह अधर्म है!!”
सच
तो यह है कि अब्रह्मी संस्कृतियाँ निंदक हैं| मस्जिदों की अज़ान ईशनिंदा है| चर्चों में भी इष्टदेवों का अपमान होता है| जो शिक्षा आप हमें दे रहे हैं, मुझे दुःख है कि आप यही शिक्षा अब्रह्मी संस्कृतियों के
अनुयायियों को नहीं दे सकते| देंगे
तो आप भी हमारे ९ लोगों के भांति जेल चले जाएँगे|
लूट
और कामुक सुख के लोभ में अब्रह्मी संस्कृतियों के अनुयायी यहूदी और मुसलमान मजहब
की आड़ में स्वेच्छा से गाजे बाजे के साथ वीर्यहीन बनने के लिए खतना कराते हैं और
अपने ब्रह्मतेज को गवां देते हैं| जीवन
भर रोगी, अशक्त और दास बन कर जीते हैं|
“वेदों
के अनुसार प्रत्येक मनुष्य ब्रह्म है| उसको
जन्म के साथ ही प्राप्त वीर्य
का सूक्ष्म अंश ब्रह्म सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ,
सर्व-व्याप्त, वह शक्ति है जिससे सब कुछ, यहाँ तक कि ईश्वर भी उत्पन्न होते हैं। इसका जितना अधिक संचय
होगा – मनुष्य उतना ही अधिक शक्तिशाली होगा|”
वीर्य
अष्ट सिद्धियों और नौ निधियों का दाता, स्वतंत्रता,
परमानंद, आरोग्य, ओज,
तेज और स्मृति का जनक है| जो कोई वीर्यक्षरण करता या कराता है,
स्वयं का ही नहीं - मानवजाति का भयानक
शत्रु है| विशेष विवरण के लिये नीचे की लिंक पर
क्लिक करें:-
http://www.aryavrt.com/veerya-1
किसान
को सांड़ को दास बना कर खेती के योग्य बैल बनाने के लिए सांड़ का बंध्याकरण करना
पड़ता है| (अ)ब्राह्मी संस्कृतियां खतना और इन्द्र
की भांति मेनकाओं के प्रयोग द्वारा वीर्यहीन कर मनुष्य को दास बनाती हैं| निर्णय ईसाई व मुसलमान सहित मानवमात्र
को करना है कि वह ईश्वर बनना चाहता है अथवा शासकों व पुरोहितों का दास? खतने पर अपने शोध के पश्चात १८९१ में
प्रकाशित अपने ऐतिहासिक पुस्तक में चिकित्सक पीटर चार्ल्स रेमोंदिनो ने लिखा है कि
पराजित शत्रु को जीवन भर पुंसत्वहीन कर (वीर्यहीन कर) दास के रूप में उपयोग करने
के लिए शिश्न के अन्गोच्छेदन या अंडकोष निकाल कर बधिया करने (जैसा कि किसान सांड़
के साथ करता है) से खतना करना कम घातक है| पीटर
जी यह बताना भूल गए कि दास बनाने के लिए खतने से भी कम घातक, कौटुम्बिक व्यभिचार, यौनशिक्षा, सहजीवन, वेश्यावृत्ति
और समलैंगिक विवाह सम्बन्ध को संरक्षण देना है| संयुक्त राष्ट्रसंघ भी पीछे नहीं है| आप की कन्या को बिना विवाह बच्चे पैदा करने के अधिकार का
कानून पहले ही बना चुका है| [मानव
अधिकारों की सार्वभौम घोषणा| अनुच्छेद
२५(२). “विवाह या बिना विवाह सभी जच्चे-बच्चे
को समान सामाजिक सुरक्षा प्रदान होगी|”]. यानी
आप को ईशत्व हीन करने का कुत्सित प्रयास|
http://en.wikipedia.org/wiki/Peter_Charles_Remondino
पैगम्बरों
के आदेश और अब्रह्मी संस्कृतियों के विश्वास के अनुसार दास विश्वासियों द्वारा
अविश्वासियों को कत्ल कर देना ही अविश्वासियों पर दया करना और स्वर्ग, जहाँ विलासिता की सभी वस्तुएं प्रचुर
मात्रा में उपलब्ध हैं, प्राप्ति का पक्का
उपाय है| मजहब के आधार पर अहिंसा, सांप्रदायिक एकता और शांति प्रक्रिया
की आड़ में ईसाइयत व इस्लाम मिशन व जिहाद की हठधर्मिता के बल पर वैदिक संस्कृति को
मिटा रहे हैं| वे हठधर्मी
सिद्धांत हैं, "परन्तु मेरे उन
शत्रुओं को जो नहीं चाहते कि मै उन पर राज्य करूं, यहाँ लाओ और मेरे सामने घात करो|" (बाइबल, लूका १९:२७) और "और तुम उनसे (अविश्वासियों से) लड़ो यहाँ
तक कि फितना (अल्लाह के अतिरिक्त अन्य देवता की उपासना) बाकी न रहे और दीन (मजहब) पूरा का पूरा (यानी
सारी दुनियां में) अल्लाह के लिए हो जाये|" (कुरान, सूरह अल अनफाल ८:३९). ईश्वर उपासना की दासता नहीं
थोपता| (गीता ७:२१) और न लूट के माल का स्वामी
है| (मनुस्मृति ८:३०८). एलिजाबेथ के
साम्प्रदायिक साम्राज्य विस्तारवादी ईसा को अर्मगेद्दन द्वारा सभी धर्मों को नष्ट
कर धरती पर केवल अपनी पूजा करानी है| हिरण्यकश्यप
की दैत्य संस्कृति न बची और केवल उसी की पूजा तो हो न सकी, अब ईसा और ईसाइयत की बारी है| इन कथनों को अधर्म कह कर दिखाइए|
मस्जिदों
से मुअज्ज़िन अज़ान का प्रसारण करते हैं कि मात्र अल्लाह पूज्य है| इमाम उपदेश देता है कि जो अन्य देवता
की उपासना करता है, वह काफ़िर है|
काफ़िर या तो अपनी उपासना पद्धति त्याग दे
और मुसलमानों की भांति खतना कराकर शासक (एलिजाबेथ) का दास बने – अन्यथा मुसलमान उसे कत्ल कर दें|
मस्जिदों से ऐसा कथन ई० सन० ६३२ से ही
बलवे का कारण बन रहा है और अविश्वासियों के उपासना की स्वतंत्रता का अतिक्रमण भी
है – बलवे के लिये उत्प्रेरित करने वाले के
विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा
१५३ के अधीन अभियोग चलाने की अनुमति दंड
प्रक्रिया संहिता की धारा १९६ के अंतर्गत राष्ट्रपति या राज्यपाल अथवा जिलाधीश ही
दे सकते हैं| अपमान काफिरों का
होता है – लेकिन काफ़िर शिकायत भी नहीं कर सकते|
इतना ही नहीं - जो काफ़िर नागरिकों के
गरिमा का हनन करते हैं, उन ईमामों के गरिमा
और जीविका की रक्षा के लिए, भारतीय
संविधान के अनुच्छेद २७ का उल्लंघन कर वेतन देने का न्यायपालिका ने आदेश पारित
किया है| (एआईआर, एससी, १९९३,
प० २०८६). न्यायपालिका ने भारतीय
संविधान, कुरान और बाइबल को संरक्षण (एआईआर,
कलकत्ता, १९८५, प१०४) भी दिया है| हज अनुदान को भी सर्वोच्च न्यायलय
कानूनी मान्यता दे चुकी है| (प्रफुल्ल
गोरोडिया बनाम संघ सरकार, http://indiankanoon.org/doc/709044/). यानी मानवता को मिटाने के लिए अज़ान, धर्मान्तरण, मस्जिद और चर्च संघ सरकार द्वारा प्रायोजित व संरक्षित है|
अब तो एलिजाबेथ सरकार साम्प्रदायिक और
लक्षित हिंसा अधिनियम, २०११ ला रही है|
भारतीय
संविधान के अनुच्छेद २९(१) का संकलन कर इंडिया में अब्रह्मी संस्कृतियों को ईसाई व
मुस्लिम सहित सबको अपना दास बनाने अन्यथा नरसंहार के लिए रखा गया है| कुरान के अनुसार अल्लाह व उसके
साम्प्रदायिक साम्राज्य विस्तारवादी अल्लाह ने मानव जाति को दो हिस्सों मोमिन और
काफ़िर में बाँट रखा है| धरती को भी दो
हिस्सों दार उल हर्ब और दार उल इस्लाम में बाँट रखा है| (कुरान ८:३९) काफ़िर को कत्ल करना व दार उल हर्ब धरती को दार उल
इस्लाम में बदलना जजों ने मुसलमानों का मजहबी अधिकार स्वीकार किया हुआ है|
(एआईआर, कलकत्ता, १९८५,
प१०४). चुनाव द्वारा भी इनमें कोई
परिवर्तन सम्भव नहीं| इनको अधर्म कह कर दिखाइए|
आर्य
असली साम्प्रदायिक हैं| क्योंकि आर्य ईसा
को अपना राजा स्वीकार नहीं करते| (बाइबल,
लूका १९:२७). आर्य संसार को पापस्थल और
सबको पापी स्वीकार नहीं करते| आर्य
यह भी स्वीकार नहीं करते कि यदि वे बपतिस्मा नहीं लेते तो उन्हें स्वर्ग नहीं
मिलेगा और वे नर्क में जायेंगे और सदा नर्क की आग में जलते रहेंगे| आर्य यह भी स्वीकार नहीं करते कि यदि
वे बपतिस्मा ले लेंगे तो स्वर्ग जायेंगे और ईसा के साथ सदा रहेंगे| उनके सारे अपराध क्षमा कर दिए जायेंगे,
चाहे उन्होंने कितने भी कत्ल, बलात्कार और लूट-मार किये हों! आर्य
विवेक में विश्वास करते हैं, जिसे
ईसाइयों से जेहोवा छीन लेता है| (बाइबल,
उत्पत्ति २:१७). ईसाई अकाट्य प्रमाणों
के बाद भी विश्वास कर रहे हैं कि जारज(जार्ज) व प्रेत ईसा जेहोवा का इकलौता पुत्र
है, जो तलवार चलवाने (बाइबल, मत्ती १०:३४) व मानवता को कत्ल कराने
नहीं (बाइबल, लूका १९:२७) आया,
बल्कि मूर्ख (बाइबल, उत्पत्ति २:१७) ईसाइयों को मुक्ति
दिलाने आया है| परिवार में शत्रुता
पैदा कराने नहीं, अपितु प्रेम,
सदाचार, सम्मान व मर्यादा स्थापित कराने आया है| (बाइबल, मत्ती १०:३५-३६) व (बाइबल, लूका १२:५१-५३).
भारतीय
संविधान को भी कोई मृत्यु का फंदा और भ्रष्टाचारी नहीं मानता| जज व नागरिक दंड प्रक्रिया संहिता की
धाराओं १९६ व १९७ के अधीन, एलिजाबेथ
के मनोनीत, राज्यपालों द्वारा
शासित हैं| हम दास बनने या
मिटने के लिए विवश हैं| इन्हीं मजहबों के सम्मान
की आप हमसे अपेक्षा कर रहे हैं|
अयोध्या
प्रसाद त्रिपाठी (सू० स०) फोन: (+९१) ९८६८३२४०२५/९१५२५७९०४१
Registration Number is : DARPG/E/2014/02120