Mujahana•
Bilingual-Weekly• Volume 19 Year 19 ISSUE 28, Jul 04-10, 2014. This issue is Dhara 196 Muj14W28 Dhara 196 Muj14W28उपनिवेश की जंजीरों से मुक्ति हेतु अंतरराष्ट्रीय संगठन| विषय: अभियोग वापसी हेतु| सन्दर्भ: विचाराधीन प्राथमिकी संख्याएं ४०६/२००३ व १६६/२००६ थाना नरेला| मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट वि० श्री संदीप गुप्ता रोहिणी व १८/२००८ एटीएस कालाचौकी थाना महाराष्ट्र. मान्यवर महोदय, उपनिवेश किसे कहते हैं?उपनिवेश (कालोनी) किसी राज्य के बाहर की उस दूरस्थ बस्ती को कहते हैं, जहाँ उस राज्य की जनता निवास करती है। [भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, १९४७, अनुच्छेद ६ (ब)(।।) भारतीय संविधान व राष्ट्कुल की सदस्यता]. इस प्रकार इंडिया सहित ५३ देश एलिजाबेथ के दास हैं| पैगम्बरों के आदेश और अब्रह्मी संस्कृतियों के विश्वास के अनुसार दास विश्वासियों द्वारा अविश्वासियों को कत्ल कर देना ही अविश्वासियों पर दया करना और स्वर्ग, जहाँ विलासिता की सभी वस्तुएं प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं, प्राप्ति का पक्का उपाय है| भारतीय संविधान का अनुच्छेद २९(१) अब्रह्मी संस्कृतियों को अपनी संस्कृतियों को बनाये रखने का असीमित मौलिक मजहबी अधिकार देता है| कुरान के अनुसार अल्लाह व उसके इस्लाम ने मानव जाति को दो हिस्सों मोमिन और काफ़िर में बाँट रखा है| धरती को भी दो हिस्सों दार उल हर्ब और दार उल इस्लाम में बाँट रखा है| (कुरान ८:३९) काफ़िर को कत्ल करना व दार उल हर्ब धरती को दार उल इस्लाम में बदलना मुसलमानों का मजहबी अधिकार है| बाइबल के अनुसार केवल उन्हें ही जीवित रहने का अधिकार है, जो ईसा का दास बने| (बाइबल, लूका १९:२७). एलिजाबेथ के साम्प्रदायिक साम्राज्य विस्तारवादी ईसा को अर्मगेद्दन द्वारा धरती पर केवल अपनी पूजा करानी है| http://www,countdown.org/armageddon/antichrist.htm ‘कलिमा’ पढ़ना और अज़ान का प्रसारण भारतीय दंड संहिता की धाराओं १५३ व २९५ के अधीन संज्ञेय गैर जमानती अपराध है| फिर भी मुसलमानों पर लागू नहीं होता| क्यों कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १९६ के अंतर्गत ईसाई व मुसलमान को पद, प्रभुता और पेट के लोभ में राष्ट्रपति और राज्यपाल भारतीय संविधान और कानूनों के संरक्षण, पोषण व संवर्धन के लिए भारतीय संविधान के अनुच्छेदों १५९ व ६० के अंतर्गत शपथ दिलाकर विवश कर दिए गए हैं| बाइबल, कुरान, बपतिस्मा, अज़ान और खुत्बों के विरुद्ध कोई जज सुनवाई नहीं कर सकता| (एआईआर, कलकत्ता, १९८५, प१०४). ईशनिंदा करने और कत्ल करने की शिक्षा देने वाले मुअज्ज़िन, ईमाम और मौलवी, जो सबके गरिमा का हनन करते हैं, के गरिमा और जीविका की रक्षा के लिए, भारतीय संविधान के अनुच्छेद २७ का उल्लंघन कर वेतन देने का सर्वोच्च न्यायलय ने आदेश पारित किया है| (एआईआर, एससी, १९९३, प० २०८६) हज अनुदान को भी सर्वोच्च न्यायलय कानूनी मान्यता दे चुकी है| (प्रफुल्ल गोरोडिया बनाम संघ सरकार, http://indiankanoon.org/doc/709044/). अज़ान और खुत्बे भारतीय दंड संहिता की धाराओं १५३ व २९५ के अपराध से मुक्त हैं| इस प्रकार ईसाई व मुसलमान हम वैदिक सनातन संस्कृति के अनुयायियों की हत्या कराने केलिए रोके गए हैं| इसीलिए भारतीय दंड संहिता की धारा १०२ से प्राप्त अधिकार से हमने बाबरी ढांचा गिराया है और हमारे ९ अधिकारी मक्का, मालेगांव आदि के विष्फोट में बंद हैं| क्यों कि विवाद का मूल बिंदु है कि अब्रह्मी संस्कृतियाँ व अपराध स्थल मस्जिद धरती पर क्यों रहें? मस्जिद बचाने वाले आत्मघाती हैं| क्या आप अज़ान और मस्जिद को मिटाने में आर्यावर्त सरकार की सहायता करेंगे? विकल्पहीन दया के पात्र जजों, सांसदों, विधायकों और लोक सेवकों ने जिस भारतीय संविधान में आस्था व निष्ठा की शपथ ली है (भारतीय संविधान, तीसरी अनुसूची), उन्होंने जहां भी आक्रमण या घुसपैठ की, वहाँ की मूल संस्कृति को नष्ट कर दिया, लक्ष्य प्राप्ति में भले ही शताब्दियाँ लग जाएँ, अब्रह्मी संस्कृतियां आज तक विफल नहीं हुईं. मस्जिदों से अज़ान और खुत्बों द्वारा अविश्वासियों के विरुद्ध जो भी कहा जाता है, वह सब कुछ भारतीय दंड संहिता की धाराओं १५३ व २९५ के अंतर्गत अपराध ही है, जो सन १८६० ई० में इनके अस्तित्व में आने के बाद से आज तक, मस्जिदों या ईमामों पर कभी भी लागू नहीं की गईं. जहां अब्रह्मी संस्कृतियों के अनुयायियों को भारतीय संविधान के अनुच्छेद २९(१) द्वारा ईशनिंदा का असीमित मौलिक मजहबी अधिकार दिया गया है, वहीँ ईशनिंदा के विरोधी को भारतीय दंड संहिता की धाराओं १५३ व २९५ के अधीन दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १९६ के अंतर्गत संस्तुति देकर प्रताड़ित किया जा रहा है क्योंकि एलिजाबेथ को अविश्वासियों को धरती से समाप्त करना है. भारतीय दंड संहिता की धाराओं १५३ व २९५ का संकलन इसलिए किया गया है कि ज्यों ही किसी नागरिक का स्वाभिमान जग जाए और वह विरोध कर बैठे, जैसा कि मैं १९९१ से करता आ रहा हूँ और जेल में सन २००८ से बंद मेरे ९ मालेगांव बम कांड के सहयोगियों ने किया है, त्यों ही उसको कुचल दिया जाये - ताकि लोग भयवश आतताई अब्रह्मी संस्कृतियों का विरोध न कर सकें और वैदिक सनातन संस्कृति को सहजता से समाप्त कर दिया जाये. यही कारण है कि किसी वाइसराय, राष्ट्रपति या राज्यपाल ने, ई०स० १८६० से आज तक कभी भी मस्जिदों से अज़ान देने वाले किसी ईमाम/मुअज्जिन पर दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १९६ के अधीन अभियोग चलवाने का साहस नहीं किया – जब कि यह अपमान स्वयं तब के वाइसराय जो अब राष्ट्रपति कहे जाते हैं, राज्यपाल और जिलाधीश का भी होता रहा है. हमारा अपराध यह है कि हम एलिजाबेथ के उपनिवेश को चुनौती देते हैं हम जानना चाहते हैं कि मस्जिद, जहां से काफिरों के आराध्य देवों की ईशनिंदा की जाती है और जहां से काफिरों को कत्ल करने की शिक्षा दी जाती है, को नष्ट करना अपराध कैसे है? http://www.aryavrt.com/Home/aryavrt-in-news मैं स्वयं इस्लाम और ईसाइयत का विरोध करने के कारण ४२ बार जेल गया हूँ मुझे जेल में जहर दिया गया है. ५० अभियोग चले, जिनमे से ५ आज भी लम्बित हैं मैंने बाबरी ढांचा गिरवाया है http://www.youtube.com/watch?v=yutaowqMtd8 हम महामहिम महोदय से आग्रह करते हैं कि निज हित में मेरे अभियोग वापस ले लें| अयोध्या प्रसाद त्रिपाठी (सू० स०) फोन: (+९१) ९८६८३२४०२५/९१५२५७९०४१ दि०; शनिवार, 28 जून 2014य नोट: उपरोक्त लेख पर किसी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं है| इसे आप अपने नाम से भी प्रकाशित करा सकते हैं|
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